बिजनेस कैसे करे ? Business Kaise Kare ?

बिजनेस कैसे करे ? Business Kaise Kare ?

बिजनेस कैसे करे? Business Kaise Kare ?

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बिसनेस करने से पहले ये पता होना जरूरी है की बिसनेस होता क्या है बिसनेस का अर्थ एक ऐसे संस्था से है जो सामान सर्विस देने के लिए कुछ शुल्क लेती है. बिज़नस का उद्देश्य लाभ कमाना होता है.

व्यवसाय से तात्पर्य  है, जिसमें कोई पूंजी लगाकर या किसी तरह का जोखिम उठाकर आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अथवा किसी अन्य प्रकार के रिटर्न पाने के उद्देश्य से कार्य किया जाता है।

आज के समय में सभी लोगों के विचार व्यवसाय कि तरफ हो गया है. व्यवसाय हो या नौकरी या कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके बारें में सभी जानकारी का होना जरूरी है.

पैसा कमाने का कई तरीके है. लेकिन, ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए व्यवसाय ही करना होगा. यही एक मात्र रास्ता है जिससे, जितना चाहते हो उतना धन कमाया  जा सकता है.

बिजनेस कैसे करे ? Business Kaise Kare ?
बिजनेस कैसे करे ? Business Kaise Kare ?

व्यवसाय के तीन प्रकार होते हैं,

व्यवसाय के प्रकार

उत्पन्न करने से लेकर उत्पाद या सेवा को अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाने में की गई सभी आर्थिक गतिविधियों को तीन भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार हैं।

  • व्यापार
  • सेवा
  • उद्योग

इस प्रकार फुटपाथ पर बैठकर छोटे से छोटा काम करने वालों से लेकर टाटा बिडला अंबानी जैसे बड़े उद्योगपति सभी लोग इन तीन श्रेणियों के अंतर्गत ही काम करते हैं।

आपको भी अपनी सुविधानुसार अपने लिए इन्हीं में से उचित बिजनेस को तलाशना होगा। इसलिए हम प्रत्येक श्रेणी को विस्तार से समझेंगे।

1). व्यापार करना

धन कमाने हेतु वस्तुओं को खरीदने बेचने, विनिमय एवं हस्तांतरण करने की क्रिया को व्यापार करना कहते हैं।

वस्तुओं को अधिक मात्रा (थोक) में सस्ते में खरीदना। ये खरीदी उत्पादक, निर्माता थोक विक्रेता से की जा सकती है। इन वस्तुओं पर हुए खर्च और लाभ की राशि को जोड़ कर बेच देना, इसे ही व्यापार करना कहते हैं।

इसे ट्रेडिंग बिजनेस मर्केंटाइल बिजनेस भी कहते हैं।

वर्तमान में आप इसे आनलाइन एवं आफलाइन भी कर सकते हैं।

व्यापारिक गतिविधियों को दो बड़े भागों में बांटा गया है। जो इस प्रकार हैं।

  1. आंतरिक व्यापार
  2. बाह्य व्यापार

(i). आंतरिक व्यापार :-

देश की सीमा के अंदर किए गए व्यापार को आंतरिक व्यापार कहते हैं।

इसमें एक राज्य से दूसरे राज्य, एक जिले से दूसरे जिले, एक शहर से दूसरे शहर, एक गांव से दूसरे गांव, सभी स्तर पर आपसी क्रय विक्रय किया जाता है।

इस आंतरिक व्यापार को पुन: दो भागों में बांटा गया है। जो इस प्रकार हैं

थोक व्यापार  :-

इसमें थोक व्यापारी द्वारा, निर्माता या उत्पादक से अधिक मात्रा में, थोक मूल्य पर माल खरीद लिया जाता है। इस माल को वह फुटकर व्यापारी अथवा ग्राहक को कुछ लाभ लेकर बेच देता है।

फुटकर व्यापार (Retailer) :- इसमें फुटकर व्यापारी, द्वारा उत्पादक, निर्माता या थोक व्यापारी से माल खरीदा जाता है। इस माल को वह सीधे उपभोक्ताओं को खुदरा मूल्य पर बेच कर लाभ कमाता है।

(ii). बाह्य व्यापार :-

देश के बाहर दूसरे देशों के साथ व्यापार करने को बाह्य व्यापार कहते हैं।

बाह्य व्यापार को तीन भागों में बांटा गया है।

आयात व्यापार  :- इस व्यापार के अंतर्गत दूसरे देशों से माल खरीद कर अपने देश मे विक्रय किया जाता है।

निर्यात व्यापार  :- व्यापार के इस प्रकार में अपने देश में उत्पादन कर, माल बना कर, अथवा खरीद कर अन्य दूसरे देशों को माल विक्रय किया जाता है।

पुर्ननिर्यात व्यापार :- व्यापार के इस वर्ग में किसी अन्य देश से आयात कर दूसरे देश को निर्यात किया जाता है।

2). सेवा व्यवसाय 

धन कमाने के लिए किसी विशेष विषय/हूनर में विषेशज्ञता प्राप्त करना। उसे शुल्क लेकर जरूरत मंद लोगों को प्रदान करना इसे सेवा व्यवसाय कहते हैं। इसे पेशा वृत्ति प्रोफेशन सर्विसेज भी कहते हैं।

इसे शुरू करने हेतु आपको हूनर विशेष में अध्ययन कर पात्रता प्राप्त संस्थानों से रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। सेवा व्यवसाय में डॉक्टर, वकील,अध्यापक, कंपनी सचिव, संवैधानिक लेखाकार ऐसे अनेक पेशेवर कार्य किए जा सकते हैं।

इसके अतिरिक्त टेलरिंग, कारपेंटर परिवहन, आई टी, इवेंट मैनेजमेंट, भोजनालय, रेस्टोरेंट, ब्यूटी पार्लर, मरम्मत इकाई ऐसे ही अन्य अनेक सेवा से संबंधित व्यवसाय भी स्थापित किए जा सकते हैं।

सेवा उद्योग में वे सभी कार्य भी सम्मिलित हैं, जिन्हें बतौर व्यवसाय के सहायक,व्यवसायी की मदद के लिए किया जाना जरूरी होता है, उदाहरणार्थ  वित्त एवं बैंकिंग, परिवहन, बीमा, दूर संचार, भंडारण, विज्ञापन से संबंधित सेवाएं आदि।

3). उद्योग लगाना

उद्योग से आशय उत्पादन, उत्खनन, निषकर्षण, प्रजनन, निर्माण विनिर्माण, प्रक्रियन आदि सभी कार्यों से है।

समस्त प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को मानवीय श्रम एवं मशीनों की सहायता से और अधिक उपयोगी बनाना। तथा बाजार में अथवा ग्राहकों को प्रदाय करने से है।

उद्योगों को तीन भागों में बांटा गया है।

  • प्राथमिक उद्योग 
  • द्वितियक उद्योग 
  • तृतीयक/सेवा उद्योग 

(i).  प्राथमिक उद्योग :-

प्राकृतिक संसाधन से संबंधित उद्योगों का समावेश होता है।

जैसे :- खनन, कृषि वनोपज संग्रहण उद्योग

प्राथमिक उद्योग को दो भागों में बांटा गया है।

जननिक उद्योग  :- इसके अंतर्गत प्राकृतिक संसाधन कृषि, पशु पालन, वन, सी फुड से संबंधित कार्य आते हैं।

निष्कर्षण उद्योग  :- इसके अंतर्गत जमीन से खनन कोयला लोहा क्रूड आइल से संबंधित उद्योग संमिलित हैं।

(ii).  द्वितियक उद्योग :-

इस उद्योग में प्राथमिक उद्योगों द्वारा प्राप्त वस्तुओं को विभिन्न तरीकों से उपयोगी बनाने के काम शामिल हैं। कपास से सूत बनाना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना।

कार्य के हिसाब से द्वितियक उद्योगों को दो भागों में बांटा गया है।

विनिर्माण उद्योग :- इस उद्योग में कच्चे माल से तैयार माल बनाया जाता है मुख्य रूप से उपयोगी उत्पाद का निर्माण किया जाता है। विनिर्माण उद्योग को चार भागों में बांटा गया है।

विश्लेषणात्मक उद्योग एक ही वस्तु का विश्लेषण प्रथक्करण कर अनेक उत्पाद बनाते हैं जैसे तेल शोधक उद्योग

कृतिम उद्योग अलग अलग संगठकों को मिलाकर प्रक्रिया द्वारा नये उत्पाद का रूप दिया जाता है। जैसे सीमेन्ट उद्योग

प्रक्रियायी उद्योग ये उद्योग उत्पाद निर्माण के लिए अलग अलग क्रमिक प्रक्रिया चरणों के द्वारा उत्पाद बनाते हैं। जैसे कागज कपड़ा चीनी उद्योग

सम्मेलित उद्योग इन उद्योगों में नये उत्पाद के  लिए स्पेअर्स जोड़कर नया उत्पाद तैयार किया  जाता है। जैसे टीवी कंप्यूटर कार आदि।

निर्माण उद्योग :- इस उद्योग में निर्माण कार्य किया जाता है इसमें सड़क पुल बांध नहरें सुरंग बिल्डिंग आदि का समावेश है।

(iii). तृतीयक/सेवा उद्योग  :-

ये उद्योग प्राथमिक एवं द्वितियक उद्योगों को सेवा सुविधा प्रदान करते हैं। इनमें वित्त, बैंकिंग, यातायात कंटेनर भंडारण दूर संचार विज्ञापन सुविधाएं आदि सम्मिलित हैं

व्यवसाय के स्वामित्व के अनुसार व्यवसाय का वर्गीकरण

अपना व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए यह जानकारी उनका व्यवसाय प्रारंभ करने मे बहुत सहायक होगी।

प्रोप्राइटरशिप बिजनेस

एकल स्वामित्व या प्रोप्राइटरशिप बिजनेस एक ही व्यक्ति के द्वारा शुरू किया जाता है। वह व्यक्ति उस व्यवसाय का मालिक होता है।

वही बिजनेस में धन लगाता है। तथा सारा कारोबार करता है। एवं होने वाले लाभ हानि को भी वहन करता है। उसकी असीमित देयता होती है। बिजनेस का यह प्रारुप पेशेवर, व्यक्ति, सेवा कार्य, एवं छोटे दुकानदारों के लिए उत्तम है।

2. पार्टनरशिप बिजनेस

साझेदारी बिजनेस दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा मिल कर स्थापित किया जाता है। सभी साझदारों के मध्य एक रजिसटर्ड पार्टनरशिप डीड के द्वारा बिजनेस से संबंधित समझौता किया जाता है।

इस समझौते में यह सब पहले से तय कर लिया जाता है, कि कौन-कौन कितना-कितना धन लगाएगा। कौन क्या काम करेगा। तथा लाभ को आपस में कैसे बांटा जावेगा।

इस साझदारी बिजनेस को साझदारों की देयता तय करते हुए तीन तरह से बनाया जा सकता है।

  • सामान्य साझेदारी
  • सीमित साझेदारी
  • सीमित देयता साझेदारी

3. फ्रेंचाइजी बिजनेस

फ्रेंचाइजी बिजनेस में आप ब्रांडेड कंपनी से उसके उत्पाद एवं सेवा को बेचने का अधिकार प्राप्त कर व्यापार कर सकते  हैं। कम निवेश, कम समय एवं थोड़े से अनुभव के साथ बिना जोखिम आप इसे सरलता से शुरू कर सकते हैं।

फ्रेंचाइजी देने वाली कंपनी अपनी फ्रेंचाइजी को बिजनेस संबंधी प्रशिक्षण एवं खरीदने से लेकर बेचने तक की सभी सुविधाएं भी देती है।

इसके लिए वह फ्रेंचाइजी रायल्टी शुल्क वसूल करती है। इस बिजनेस में आप एक तरह से किसी ब्रांडेड कंपनी की अधिकृत शाखा के रूप में ही काम करते हैं।

4. संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय 

संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय के रूप में भी व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है। परिवार का मुखिया इसका मालिक होता है यह हिन्दू अधिनियम अनुसार शासित होता है। केवल परिवार के लोग इसके सदस्य होते हैं

5. कोआपरेटिव सोसायटी 

इसमें काम करनेवाले व्यक्तियों द्वारा सहकारी समिति  बना कर काम किया जाता है। इसे सहकारिता अधिनियम के अनुसार स्थापित किया जाता है। इसे कंज्यूमर को आपरेटिव सोसाइटी एवं वर्कर को- आपरेटिव सोसाइटी दोनों तरह से बनाया जा सकता है।

6. एक व्यक्ति कंपनी 

एक व्यक्ति कंपनी (ओपीसी) इसे वर्ष 2013 से लागू किया गया है। इसका मालिक और सदस्य एक ही होता है। इसे केवल भारतीय नागरिक खोल सकता है। विदेशी व्यक्ति को इसकी अनुमति नहीं है। इसमें मालिक एवं कंपनी का अस्तित्व अलग अल ग होता है।

7. प्राइवेट लिमिटेड कंपनी 

निजी सीमित कंपनी यह बहुत प्रचलित स्वरूप है। इसमें 2 से 200 तक सदस्य हो सकते हैं।  इसमें 2 से 15 तक डायरेक्टर भी हो सकते हैं।

यह कपनी अधिनियम 2013 अनुसार स्थापित की जाती है। यह अपने आर्टिकल आफ एसोसिएशन में बताए नियम एवं शर्तों के अनुसार सभी कार्य करती है।

इसे अपनी लेखा पुस्तकें, वार्षिक प्रतिवेदन बनाना एवं संचालक मंडल की सभा कराना भी जरूरी होता है।

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी 3 तरह से बनाई जा सकती है।

सीमित अंशपूंजी कंपनी

सीमित ग्यारंटी कंपनी

असीमित कंपनी

8. सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी 

सार्वजनिक सीमित कंपनी, कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार स्थापित की जा सकती है।

इन कंपनियों को कंपनी निगमन और शुरुआत हेतु सरकार से प्रमाणपत्र लेना पड़ता है। इसी तरह प्रबंधन में नियुक्ति एवं वैधानिक बैठकों के आयोजन हेतु भी सरकार से मंजूरी लेना होता है।

इसमें कम से कम 7 सदस्य अवश्य होना चाहिए। अधिकतम सदस्यों की कोई सीमा नहीं होती। यह आम जनता को अपने शेयरों की सदस्यता लेने के लिए आमंत्रित कर सकती है।

इसकी न्युनतम पेडअप अंशपूंजी 5 लाख रुपये होने चाहिए । अधिक तम की कोई सीमा नहीं। यह अपने आर्टिकल आफ एसोसिएशन में बताए नियम एवं शर्तों के अनुसार सभी कार्य करती है। इसे अपनी लेखा पुस्तकें, वार्षिक प्रतिवेदन बनाना एवं संचालक मंडल की सभा कराना भी जरूरी होता है।

9. कुटीर उद्योग, घरेलू उद्योग 

कुटीर एवं घरेलू उद्योग बहुत कम पैसों में परिवार की मदद से घर से ही शुरू किए जा सकते हैं। यदि ग्राम में शुरू किए जाते हैं तो ये ग्रामीण कुटीर उद्योग कहलाते हैं। यदि शहर में शुरू करने पर शहरी कुटीर उद्योग कहलाये

पूंजी मशीनों तथा कर्मचारियों की संख्या के आधार पर बिजनेस का वर्गीकरण

 1. सूक्ष्म उद्यम 

ऐसे उद्योग जहां संयंत्र मशीनरी और उपकरणों में निवेश राशि ₹ एक करोड़ से अधिक नहीं है।

एवं कुल वार्षिक टर्नओवर राशि ₹ पांच करोड़ से अधिक नहीं है।

साथ ही कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 1 से 9 है तक है। ये सूक्ष्म उद्यम की श्रेणी में आते हैं।

2. लघु उद्योग 

ऐसे उद्योग जहां  संयंत्र मशीनरी और उपकरणों में निवेश राशि ₹ दस करोड़ से अधिक नहीं है।

एवं कुल वार्षिक टर्नओवर राशि ₹ पचास करोड़ से अधिक नहीं है।

साथ ही कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 10 से 49 है तक है। ये लघु उद्यम की श्रेणी में आते हैं।

3. मध्यम उद्योग 

ऐसे उद्योग जहां संयंत्र मशीनरी और उपकरणों में निवेश राशि ₹ पचास करोड़ से अधिक नहीं है।

एवं कुल वार्षिक टर्नओवर राशि ₹ दो सौ पचास करोड़ से अधिक नहीं है।

साथ ही कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 50 से 249 है तक है। ये मध्यम उद्यम की श्रेणी में आते हैं।

व्यवसाय का उद्देश्य:  | Objective of Business

व्यवसाय का उद्देश्य वह उद्देश्य है जिसके लिए एक व्यवसाय स्थापित और चलाया जाता है। किसी व्यवसाय की सफलता के लिए उद्देश्यों का उचित चयन आवश्यक है।

व्यवसायियों के पास हमेशा कई उद्देश्य होते हैं। सभी उद्देश्यों को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये (1) आर्थिक उद्देश्य और (2) सामाजिक उद्देश्य हैं

1. आर्थिक उद्देश्य | Economic Objective

व्यवसाय एक आर्थिक गतिविधि है और इसलिए, इसका उद्देश्य आर्थिक परिणाम दिखाना है। व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्य इस प्रकार हैं:

(i) लाभ अर्जित करना: | Earning Profit

लाभ का अर्थ है व्यय से अधिक आय। प्रत्येक व्यवसायी का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना है। एक व्यवसाय लाभ अर्जित किए बिना सेवा नहीं कर सकता। न केवल अस्तित्व के लिए, बल्कि व्यापार के विकास और विस्तार के लिए भी इसकी आवश्यकता है।

(ii) ग्राहक का बाजार खड़ा होना / निर्माण:

 व्यवसाय लंबी अवधि के लिए तभी जीवित रह सकता है जब बाजार में कोई बड़ा हिस्सा लेने में सक्षम हो और बाजार खड़ा हो। यह तभी संभव है जब व्यवसाय ग्राहकों की जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सामान और सेवाएं प्रदान करता है। इसलिए, ग्राहकों (बाजार) का निर्माण और संतुष्टि व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

(iii) नवाचार: 

नवप्रवर्तन का अर्थ है नए उत्पाद बनाना या पुराने उत्पादों की नई विशेषताओं को जोड़ना और अधिक उपयोगी बनाने के लिए, उत्पादन और वितरण के तरीकों में सुधार करके नए बाजारों की खोज करना आदि। प्रतिस्पर्धा के इन दिनों में, एक व्यवसाय तभी सफल हो सकता है जब वह बनाता है नई डिजाइन, बेहतर मशीनें, बेहतर तकनीक, नई किस्में आदि।

(iv) संसाधनों का इष्टतम उपयोग:.

 यह व्यापार में नियोजित पुरुषों, सामग्री, धन और मशीनरी के सर्वोत्तम उपयोग को संदर्भित करता है। व्यवसाय के संसाधन दुर्लभ हैं, इसलिए इनका उपयोग सर्वोत्तम तरीके से किया जाना चाहिए ताकि व्यवसाय को अपने संसाधनों का अधिकतम लाभ मिल सके।

(v) उत्पादकता में सुधार:

 इसका उपयोग दक्षता के उपाय के रूप में किया जाता है। प्रत्येक व्यावसायिक उद्यम को अधिक उत्पादकता का लक्ष्य रखना चाहिए – निरंतर अस्तित्व और विकास सुनिश्चित करने के लिए। यह उद्देश्य अपव्यय को कम करके और मशीनों और उपकरणों, मानव संसाधन, धन आदि का कुशल उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है।

2. सामाजिक उद्देश्य | Social objective 

व्यवसाय समाज का अभिन्न अंग है। यह समाज के संसाधनों का उपयोग करता है। यह अपने उत्पादों या सेवाओं को समाज के सदस्यों को बेचकर लाभ कमाता है। इसलिए व्यवसायी की ओर से समाज के लिए कुछ करना अनिवार्य हो जाता है। व्यवसाय के महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य इस प्रकार हैं:

(i) उचित मूल्य पर गुणवत्ता के सामान और सेवाएं: 

व्यापार का पहला सामाजिक उद्देश्य उपभोक्ताओं के उदाहरणों के लिए निरंतर आधार पर उचित चावल और उचित मात्रा में बेहतर गुणवत्ता वाला उत्पाद प्रदान करना है।

उदाहरण: उपभोक्ता बिजली के सामानों पर आईएसआई मार्क की तलाश करते हैं, खाद्य उत्पादों पर एफपीओ मार्क। ज्वैलरी पर हॉलमार्क।

(i) एंटी-सोशल और अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस से बचाव:

 असामाजिक प्रथाओं में जमाखोरी, कालाबाजारी और मिलावट शामिल हैं। लोगों को गुमराह करने और उनका शोषण करने के लिए विज्ञापनों में झूठे दावे करना अनुचित व्यापार व्यवहार का एक उदाहरण है। व्यवसाय को ऐसी प्रथाओं में शामिल नहीं होना चाहिए।

(ii) रोज़गार सृजन: 

अब दिन, रोज़गार समाज की सबसे बड़ी समस्या है। व्यवसाय को देश में रहने वाले अधिक से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करना चाहिए। विकलांग और विकलांग लोगों को अतिरिक्त देखभाल दी जानी चाहिए।

(iii) कर्मचारी कल्याण: | Employment Welfare 

कर्मचारी एक मूल्यवान संपत्ति हैं और वे व्यवसाय की सफलता के लिए महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। व्यापार का एक अन्य सामाजिक उद्देश्य है, इसलिए, काम की अच्छी स्थिति, उचित वेतन और सुविधाएं जैसे कि आवास, चिकित्सा और मनोरंजन आदि प्रदान करके कर्मचारियों का कल्याण सुनिश्चित करना है। ऐसी कल्याण सुविधाएं कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

(iv) सामुदायिक सेवा: | Community Service

 व्यवसाय को उस समाज के लिए कुछ योगदान देना चाहिए जहाँ वह स्थापित और संचालित पुस्तकालय, औषधालय, शैक्षिक संस्थान आदि कुछ ऐसे योगदान हैं जो एक व्यवसाय बना सकता है और समुदाय के विकास में मदद कर सकता है।

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